Sunday, February 19, 2006

सजा

मिली है बहोत सजा
उनसे दिल लगाने की
नजर लग गयी
हमारे प्यारको जमानेकी

कबर से निकले हुये
दोनो हाथ कहते है
आरजू रह गयी
उन्हे गले लगानेकी

2 comments:

Anonymous said...

खरं !

Dinesh said...

मित्रा देवेन्द्र,
या जगात काहीच खरं नाही आहे..

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